सफर के दौरान होने वाली परेशानी (Motion Sickness)
1) कान का भीतरी भाग :- कान के भीतरी भाग अर्धचन्द्राकार नली (Semicircular canal) का द्रव, सफर के दौरान शरीर की पल पल बदलने वाली स्थिति यथा उपर-नीचे, दायें बायें, आगे पीछे, चक्राकार, को sense कर दिमाग को खबर करती है.
2) आँखे : आँखे ही शरीर के वास्तविक स्थिति के बारे में दिमाग को जानकारी देती है कि आप किस दिशा में चल रहें है.
3) त्वचा की संवेदनशील ग्रन्थियाँ :- ये ग्रन्थियाँ दिमाग को बताती है की शरीर का कौन सा भाग जमीन के संपर्क मे है.
4) मांसपेशियाँ और जोडों कॊ संवेदनशील ग्रन्थियाँ : ये संवेदनशील ग्रन्थियाँ सफर के दौरान, शरीर के मांसपेशियाँ और जोडों मे होने वाली हलचल तथा शरीर की वास्तविक स्थिति के वारे में दिमाग को हर पल खबर देती है.
हमारा दिमाग उपरोक्त अंगों से प्राप्त सुचनाओं के द्वारा शरीर के विभिन्न स्थितियों मे एक समग्र रुपरेखा तैयार करती है कि उस तात्कालिक क्षण में शरीर की क्या स्थिति थी. सडक मार्ग से यात्रा के दौरान प्रत्येक क्षण शरीर की स्थिति मे परिवर्तन होता रहता है और उपरोक्त अंग पल प्रतिपल बदल रही शरीर की स्थिति, दिशा और दशा , दिमाग को प्रेषित करते रहते है. जिस द्रुत गति से उपरोक्त अंग दिमाग को सुचनाएं प्रेषित करती है, यदि दिमाग उसी द्रुत गति से, प्राप्त सुचनाओं में तालमेल नहीं बैठा पाता है तो Motion Sickness की स्थिति आती है.
एक उदाहरण के रुप में इसे समझा जा सकता है:- आप कार/बस से कहीं जा रहें हैं और अपनी सीट पर एक किताब/समाचार पत्र पढ रहे हैं, इस स्थिति में आपके कान का आन्तरिक भाग sense कर रहा है कि आप आगे जा रहें हैं/ आगे की ओर चल रहें हैं और आपके दिमाग को आपकी पल पल बदलती स्थिति के बारे में सुचित कर रही हैं, परन्तु आपकी आँखें पढने मे व्यस्त हैं और उसमे कोई हलचल नहीं है साथ ही साथ मांसपेशियाँ और जोडों की संवेदनशील ग्रन्थियाँ दिमाग को सुचित कर रही है कि आप स्थिर बैठें हैं, इस स्थिति मे दिमाग उपरोक्त अंगों से प्राप्त सुचनाओं मे कोई तालमेल नहीं बैठा पाता है और दिमाग मे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
इस स्थिति में आप बेचैन और थका हुआ सा अनुभव करने लगेगें, पेट के अन्दर हलचल होने लगेगा और बाहर की ओर वेग उत्पन्न होने लगेगा, बडे वेग से उल्टीयाँ होने लगेगा. स्थिति बिगड कर गंभीर रुप ले सकती है.
निन्म उपायों से Motion Sickness से कुछ हद तक बचा जा सकता है.
1) गाडी मे बैठ कर चेहरे को हमेशा आगे की ओर रखें. आँखों को सदा गाडी के चाल की दिशा मे रखें . इससे आँख और कान के द्वारा sense की गई स्थिति मे अन्तर नही होता है.
पीछे मुँह वाली सीट पर कभी न बैठे.
पीछे की ओर न देखें.
2) हमेशा बाहर की ओर देखें, दूर की वस्तुएं देखें . इससे आपकी आँखे यह sense नहीं कर सकेगी की आप स्थिर हैं. लगातार बदलते दृश्य हमेशा motion को sense करेगी.
3) किसी बडी गाडी यथा, नाव, हवाई जहाज आदि मे बैठने समय हमेशा ऎसी जगह बैठे जहाँ कम से कम हलचल हो, सबसे अच्छा बीच मे बैठें.
4) पेट साफ रखें, कब्ज की स्थिति मे आमाशय मे ढेर सारा अनपचा पदार्थ पडा रहता है जो वेग की अवस्था में तेजी से बाहर निकलता है.
सबसे अच्छा है कोई दवा जो motion sickness मे राहत दे सदा अपने पास रखें. आपातकाल के लिए एक प्लास्टिक बैग अपने पास रखें यात्रा के दौरान, गाडी में उल्टियाँ होने पर यह बैग काम आयेगी.
मै खुद Motion Sickness का शिकार रहा हुँ. बस/टैक्सी से सफर करते समय काफी परेशानी होती थी. कुछ किलोमीटर की दुरी का सफर भी कठीन लगता था. कई एलोपैथिक दवाओं का व्यवहार किये कोई खास लाभ नहीं हुआ पर एक दवा AVOMINE (Promethazine theoclate) सबसे अधिक उपयोगी है. मै avomine का दो टेबलेट हमेशा अपने पास रखता हुँ. परन्तु इससे नींद आ जाती है. अत: ड्राईविंग करते वक्त बिल्कुल न लें.
दवायें:-
नक्स भोमिका (Nux Vomica) :- Motion Sickness के अधिकांश व्यक्ति इससे ठीक हो जाते है. यात्रा के दो घंटे पहले इसकी दो खुराकें (दो बुन्द दवा जीभ पर) एक एक घंटे पर ले लें. इसका मुख्य लक्षण, तेज सिरदर्द के साथ वमन और चक्कर आना होने का है.
काक्युलस इंडिका (Coculus Indica):- नक्स वोनिका के बाद दुसरी सबसे प्रभावी दवा काक्युलस है. सुस्ती, च्क्कर आना, उल्टियाँ होना, वमन की इच्छा बनी रहना, आदि मुख्य लक्षण है.रोगी व्यक्ति अकेला रहना और लेटना चाहता है. कोई भी गंध, दृश्य, भोजन का विचार आने से भी वमन और वमन की इच्छा ्बनी रहना (Nausea) .
पेट्रोलियम (Petrolium) : मुँह मे लगातार लार (Saliva) आना, चेहरा पीला पडना, चेहरा ठंडे पसीने से तरबतर हो जाना, पेट मे sensation होना. बेचैनी , वमन होना और वमन की इच्छा बनी रहना आदि इसके मुख्य लक्षण है.
मेरा अनुभव है कि यात्रा शुरु होने के दो घंटे पहले एक एक खुराक Nux Vomica-200 और Coculus -200 ले लें , यह सबसे लाभकारी होगा, रास्ते मे भी एक एक खुराक ले लें.
दर्द निवारक एलोपैथिक दवायें और उसके साईड इफेक्ट
दर्द निवारक एलोपैथिक दवायें और उसके साईड इफेक्ट
क्या हैं पेनकिलर्स
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-प्रसिद्ध दर्द निवारक दवा Nimuslide अधिकांश देशों मे प्रतिबंधित है पर यह भारत मे आम दर्द निवारक दवा के रुप मे जानी जाती है, के ज्यादा व्यवहार के कारण लीवर के खराब (Lever Failure) होने की संभावना होती है.
मैं हैनिमैन का शुक्र्गुजार हुँ कि होम्योपैथिक जैसी निर्दोष और पावरफुल चिकित्सा पद्धति का गिफ्ट हमें दिया.. इसमे बहुत सारे दर्द निवारक दवायें है जो कि बिना किसी साइड इफेक्ट के आपको दर्द से आराम दिला सकती है. यह सही है कि होम्योपैथिक मे दर्द निवारक दवा का चुनाव एलोपैथिक जितना आसान नहीं है. होम्योपैथिक दवा दर्द के कारण को ही मिटाती है पर एलोपैथिक दर्द निवारक दवाये ब्रेन की ओर जाने वाली दर्द के सिग्नल को ब्लाक कर के दर्द के अहसास को मिटाती है वो भी कुछ देर के लिए.
कुछ दर्द निवारक जैसे कैमोमिला, काफिया, आर्सेनिक , एकोनाईट, बेलाडोना, विरेट्रम एल्बम, ग्लोनाइन, स्पाइजेलिया, रसट्क्स, आदि ढेर सारे दर्द निवारक दवायें है जो रोगी के शारीरिक , मानसिक लक्षण और मियाज्म के आधार पर दिया जाता है.
इन दवाओं के बारे मे अगले पोस्ट मे लिखुगाँ.
ह्दय रोग : प्याज का रस और चने की दाल
ह्दय रोग मे प्याज का रस काफी लाभकारी पाया गया है. सुबह के समय कच्चे सफेद प्याज का रस दो छोटे चम्मच पीने से हदय रोग के किसी भी अवस्था में लाभ मिलता है. डा० सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार ने अपनी पुस्तक "रोग और उनकी होम्योपैथिक चिकित्सा" मे इसके बारे जिके करते हुए लिखें हैं कि अरब के एक उच्च कोटि के धनी मानी व्यक्ति का कथन है कि उसे ह्दय के रोग के दौरे पडते थे. उसने अपने घर में कार्डियोग्राम की मशीन लगा रखी थी. और प्रतिदिन वह अपने ह्दय की गति की जाँच करवाया करता था. डाक्टरों ने उसे बीसियों गोलियां खाने को दिया था. अरब के एक हकीम ने उसे प्याज का रस पीने का नुख्सा बताया था. उसने आजमाया और उसका ह्दय का रोग जाता रहा. उसने डाक्टरों की गोलियां और मशीन सभी अलग कर दी और प्याज के दो चम्मच रस प्रतिदिन पीने से वह स्वस्थ हो गया.
एलर्जी
एलर्जी कोई रोग न होकर एक शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रिया है जो किसी खास वस्तु के सम्पर्क मे आने से उत्पन्न होती है. जिस वस्तु के सम्पर्क मे आने से यह प्रतिक्रिया होती है उसे उत्तेजक कारक कहते है. अप्राकृतिक खानपान, रहन- सहन के कारण या कभी कभी वंशानुगत भी एलर्जी होने के कारणों में है.
बचपन से ही वातानुकुलित कमरों मे रहने के कारण आजकल बच्चों मे मौसम के परिवर्तन के प्रति सहिष्नुता का अभाव देखा जा रहा है. मौसम का परिवर्तन उनका शरीर बर्दास्त नहीं कर पाता है और कई प्रकार के शारीरिक लक्षण उत्पन्न हो जाते है. यह भी एक प्रकार का एलर्जी ही है.
कुछ विशेष वस्तु जैसे घर का महीन धूल , कालीन का धूल , मकडे का जाल , उपलों का धुआँ , आदि कुछ एसी वस्तुएं है जिनसे बडे पैमाने पर लोगों को कुछ शारीरिक परेशानियाँ होने लगती हैं. जैसे दम फुलना, नाक और आँख से पानी आने लगना, लगातार छीकें आने लगना आदि जिसका तत्काल ईलाज आवश्यक है.
हालांकि होम्योपैथिक दवाओं का चुनाव रोगी की प्रकॄति, उत्पन्न शारीरिक और मानसिक लक्षण के साथ साथ मियाज्म के आधार पर किया जाता है फिर भी किसी खास वस्तु (उत्तेजक कारक) से उत्पन्न एलर्जी के लिए निम्न दवा का व्यवहार कर लाभ उठा सकते है. नीचे का चार्ट देखें
धुल और धुएं से एलर्जी ---------------------- पोथोस पोटिडा
प्याज से से एलर्जी ---------------------- थुजा, एलियम सिपा
एण्टिवायोटिक दवाओं से एलर्जी ---------------- सल्फर
दुध से एलर्जी -------------------------------- ट्युवर्कोलिनम, सल्फर
दही से एलर्जी -------------------------------- पोडोफाइलम
मिठाई से एलर्जी ----------------------------- आर्जेन्टम नाईट्रिकम
चाय से एलर्जी ------------------------------- सेलेनियम
काफी से एलर्जी ------------------------------ नक्स वोमिका
किसी प्रकार का टीका लगाने से एलर्जी ----- --- थुजा
किसी प्रकार के मसालों से एलर्जी --------- --- नक्स वोमिका
लहसुन से एलर्जी --------------------------- फासफोरस
अचार से एलर्जी ----------------------------- कार्बो वेज
साधारण नमक से एलर्जी -------------------- नैट्रम म्युर
फलों से एलर्जी ------------------------------ आर्सेनिक
तम्बाकू से एलर्जी----------------------------- नक्स वोमिका
माँ के दुध से बच्चे को एलर्जी ---------------- साईलेशिया
आलुओं से एलर्जी ---------------------------- एलुमिना
सब्जियों से एलर्जी --------------------------- नैट्रम सल्फ
मछली से एलर्जी ----------------------------- आर्सेनिक
गर्म पेय पदार्थो से एलर्जी --------------------- लैकेसिस
ठंडे पेय पदार्थों से एलर्जी ---------------------- विरेट्रम एल्बम
किसी भी उत्तेजक कारक के कारण यदि --------- एपिस/आर्टिका युरेन्स
त्वचा के जलन खुजली होने लगे तो
किसी भी उत्तेजक कारक के कारण यदि --------- नक्स वोमिका/ हिस्टामिन
लगातार छींक आने लगे, नाक से
पानी आने लगे , नजले जैसा लक्षण उत्पन्न
होने पर
उक्त दवाओं के 200/1M पोटेन्सी मे ३ खुराक तीन दिनों तक (प्रतिदिन एक बार शुबह में) लेकर फिर प्रत्येक सप्ताह एक खुराक लेने पर लें आशातीत लाभ मिल सकता है..
मैने धुल और धुयें से होने बाली एलर्जी में एकोनाईट 3x, इपिकाक 3x, एन्टिम टार्ट की 3x तीनों का मिश्रण ३-३ बुन्द प्रत्येक घटें पर रोग की तीव्रता के आधार पर देकर काफी लाभ पाया है. रोग की तीव्रता घटने पर दवा देने का अन्तराल बढाते जाते है. बाद में दिन मे तीन बार
किसी भी कारण यदि अचानक छींक आने लगे, नाक और आँख से पानी आने लगे तो मैं पहले नक्स वोमिका -२०० का एक खुराक यानी दो बुन्द साफ जीभ पर दे देता हुँ और उसके ३० मिनट के बाद एकोनाईट - ३x या ३० तीन चार खुराकें १५ - १५ मिनट के अंतराल पर देने पर आशातीत सफलता प्राप्त हुई है.
यदि किसी कारण से शरीर पर लाल लाल चकत्ते आ जाये जिसमे काफी जलन और खुजलाहट हो (मुख्यत: यह मौसम के परिवर्तन के कारण या किसी उत्तेजक कारक के सम्पर्क मे आने से होता है.) तो सल्फर -२०० का एक खुराक देकर एक घंटे के बाद तीन चार खुराकें रस टक्स -२०० का दें तीन तीन घंटे के अंतराल पर .
शूकर इन्फ्लूएंजा, जिसे एच1एन1 या स्वाइन फ्लू भी कहते हैं, विभिन्न शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणुओं मे से किसी एक के द्वारा फैलाया गया संक्रमण है। शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु (SIV-एस.आई.वी), इन्फ्लूएंजा कुल के विषाणुओं का वह कोई भी उपभेद है, जो कि सूअरों की महामारी के लिए उत्तरदायी है। 2009 तक ज्ञात एस.आई.वी उपभेदों में इन्फ्लूएंजा सी और इन्फ्लूएंजा ए के उपप्रकार एच1एन1 (H1N1), एच1एन2 (H1N2), एच3एन1 (H3N1), एच3एन2 (H3N2) और एच2एन3 (H2N3) शामिल हैं। इस प्रकार का इंफ्लुएंजा मनुष्यों और पक्षियों पर भी प्रभाव डालता है। शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु का दुनिया भर के सुअरो मे पाया जाना आम है। इस विषाणु का सूअरों से मनुष्य मे संचरण आम नहीं है और हमेशा ही यह विषाणु मानव इन्फ्लूएंजा का कारण नहीं बनता, अक्सर रक्त में इसके विरुद्ध सिर्फ प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) का उत्पादन ही होता है। यदि इसका संचरण, मानव इन्फ्लूएंजा का कारण बनता है, तब इसे ज़ूनोटिक शूकर इन्फ्लूएंजा कहा जाता है। जो व्यक्ति नियमित रूप से सूअरों के सम्पर्क में रहते है उन्हें इस फ्लू के संक्रमण का जोखिम अधिक होता है। यदि एक संक्रमित सुअर का मांस ठीक से पकाया जाये तो इसके सेवन से संक्रमण का कोई खतरा नहीं होता। 20 वीं शताब्दी के मध्य मे, इन्फ्लूएंजा के उपप्रकारों की पहचान संभव हो गयी जिसके कारण, मानव मे इसके संचरण का सही निदान संभव हो पाया। तब से ऐसे केवल 50 संचरणों की पुष्टि की गई है। शूकर इन्फ्लूएंजा के यह उपभेद बिरले ही एक मानव से दूसरे मानव मे संचारित होते हैं। मानव में ज़ूनोटिक शूकर इन्फ्लूएंजा के लक्षण आम इन्फ्लूएंजा के लक्षणों के समान ही होते हैं, जैसे ठंड लगना, बुखार, गले में ख़राश, खाँसी, मांसपेशियों में दर्द, तेज सिर दर्द, कमजोरी और सामान्य बेचैनी।
लक्षण
इस के लक्षण आम मानवीय फ़्लू से मिलते जुलते ही हैं – बुखार, सिर दर्द, सुस्ती, भूख न लगना और खांसी. कुछ लोगों को इससे उल्टी और दस्त भी हो सकते हैं. गंभीर मामलों में इसके चलते शरीर के कई अंग काम करना बंद कर सकते हैं, जिसके चलते इंसान की मौत भी हो सकती है.
बचाव
मुँह और अपनी नाक को ढक कर रखें , खासकर तब जब कोई छींक रहा हो ।
बार-बार हाथ धोना जरूरी है;
अगर किसी को ऐसा लगता है कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है तो उन्हें घर पर रहना चाहिये। ऐसी स्थिति में काम या स्कूल पर जाना उचित नहीं होगा और जहां तक हो सके भीड़ से दूर रहना फायदेमंद साबित होगा।
अगर सांस लेने में तकलीफ होती है, या फिर अचानक चक्कर आने लगते हैं, या उल्टी होने लगती है तो ऐसे हालात में फ़ौरन डॉक्टर के पास जाना जरूरी है.
साभार : विकीपीडिया ( हिन्दी )
काँच की बरनी और दो कप चाय - एक बोध कथा
FIRST AIDS & HOMEOPATHY
- होमियोपैथिक फर्स्ट एड बाँक्स आप अपने पास रख सकते है, जब भी आपको जरुरत हो आप तुरंत इसका उपयोग कर सकते हैं छोटे छोटे बच्चों के साथ अक्सर कुछ न कुछ तकलीफें होती रहती है, खेलते समय छिल जाना, गिर पड़ना, कट जाना , जल जाना , अचानक पेटदर्द उठना आदि बहुत ही आम घटनायें हैं । कहीं बाहर यात्रा पर जाना हो तो समझ मे नहीं आता की यात्रा के दौरान आकस्मिक घटनायें होने पर क्या किया जाये।
1) आर्निका 200 :- किसी तरह के भी चोट शरीर मे कहीं भी लगने पर प्रथम दवा यह है। चोट वाली जगह मे सूजन हो जाना, स्थान का नीला पड़ जाना, बेतरह कुचलने जैसा दर्द। आक्रान्त स्थान पर आर्निका मलहम की हल्के हल्के मालिस दर्द से फौरन आराम देता है। किसी भी दुर्घटना होने पर यह सबसे प्रथम दवा है जिसे तत्काल दो बूंद जीभ पर (दुर्घटना के तुरंत बाद) देकर आप इसका जादू जैसा असर देखेगें। आर्निका के संबंध में मै एक सच्ची घटना का जिक्र करना चाहुगाँ, जो कि मेरे स्वंय पर दस वर्ष पहले घटी थी। रात्रि के साढे दस के लगभग मैं मोटर साईकिल से प्लांट से घर आ रहा था कि कुछ बदमासों ने लूटपाट के नीयत से मेरा मोटर साईकिल रोकने की कोशिश किया जिससे मै वहीं गिर गया। कुछ मुझे बेरहमी से पीटने लगे , किसी तरह मैं वहाँ से भागकर घर आया। आते ही आर्निका 1000 का दो बूँद जीभ पर ले लिया। नींद आ गई थी शुबह दर्द का कोई अहसास नहीं था हालांकि शरीर पर कई जगह सूजन था जो कि दो तीन खुराको मे ठीक हो गया। इस तरह दुर्घटना और चोट लगने पर आर्निका के आश्चर्यजनक असर का ढेर सारे अनुभव है।
2) कैलेन्डूला 200 :- किसी भी तरह के चोट के कारण छिल जाना, कट जाना, कटे फटे घाव, आक्रान्त स्थान पर कैलेन्डुला Q या मलहम लगाने से तत्काल आराम आयेगा। आर्निका के बाद दुसरी महत्वपूर्ण दवा कैलेण्डुला है। शरीर के किसी भाग में किसी कारण कट जाना, छिल जाना मे इसका बाहरी प्रयोग के साथ ही आन्तरिक प्रयोग काफी लाभकारी है। किसी बड़े घाव फोड़े आदि को भी इसके लोशन (एक भाग कैलेण्डुला मदर टिंक्चर और तीन भाग पानी मिलाकर लोशन बनायें) से धोकर इसका मलहम लगायें।
3) कैन्थरिस 200 :- घर में या यात्रा मे रखी जाने बाली तीसरी महत्वपूर्ण दवा कैन्थरिस है। किसी भी तरह से शरीर का कोई अंग जल जाने पर यह अमृततुल्य है। आक्रान्त स्थान पर कैन्थरिस Q या मलहम लगाये तत्काल आराम आयेगा। बाहरी प्रयोग के साथ इसकी 2-2 बून्दें जीभ पर प्रत्येक 4-4 घंटे पर दें, सुजन नहीं होगा जलन मे तुरंत राहत मिलेगा।
4) एपिस मेल 200 :- मधुमक्खी/ तत्तैया/ हड्डा आदि काटने पर मुख्य दवा। काटने के तुरन्त बाद इसकी 2 बुन्दे जीभ पर दे दें, सूजन नहीं होगी और दर्द में भी तत्काल आराम आ जायेगा।
5) लीडम पाल 200 :- किसी भी तरह के कीड़े काट खाने पर , कोई नुकीली सुई, कील आदि गड़ जाने पर इससे जबरदस्त लाभ होगा।
6) ग्लोनाईन 30/200 : तेज सिर दर्द विशेषकर धूप में निकलने पर, लू लगने की इसकी 2-2 बुन्दे हर 15-15 मिनट पर तीन चार खुराकें दे दें और इसका आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा। डाक्टर के पास जाने की जरुरत ही नहीं होगी। धूप या गर्मी मे निकलने पर जो सिरदर्द होता है वह असहनीय होता है, ग्लोनाईन की कुछ बुन्दें आपको तत्काल राहत दे देगा।
7) रसटक्स 200 : किसी ऊचें नीचे पर पैर पड़कर मोच आ जाने पर बहुत दर्द होता है, चलना फिरना मुश्किल हो जाता है। कभी कभी फिसल कर गिर पड़ने से मोच आ जाती है, कमर में दर्द हो जाता है। इसका मलहम मालिश कर दें और इसकी 2-2 बुन्दे तीन तीन घंटे पर चार खुराकें दें आशातीत लाभ होगा।
फर्स्ट एड बाक्स मे इस तरह निन्म दवायें होगी आर्निका200, कैलेण्डुला-200, कैन्थरिस-200 , एपिस-200, लीडम-200, ग्लोनाईन-200, रसटक्स-200, का एक एक ड्राम और आर्निका, कैलेण्डुला, कैन्थरिस, रसटक्स का मलहम एक-एक टयुब रख कर किसी भी दुर्घटना की स्थिति को आप अनावश्यक तनाव के बिना हल कर सकते है। कुल खर्च करीब 125/- रुपये के (लगभग) ।घर मे भी बच्चों के साथ हमेशा कुछ न कुछ चोट लगने, कट छील जाने, जलने, मोच आने की घटना होते रहता है। इस स्थिति को घर की महिलायें बड़ी आसानी से हैंडिल कर सकती है।
होम्योपैथिक और ज्वर
साधारण ज्वर :- यह कई कारणों से होता है। यह सांघातिक नही होता है, शरीर का तापक्रम 104-105 तक पहुँच जाता है। हाथ पैरों मे काफी दर्द, तेज सिरदर्द होना, कभी कभी वमन होना, बेचैनी या काफी सुस्ती होना, प्यास का होना या ना होना, पसीना आना, आदि लक्षण होते हैं। साधारणतया यह ज्वर 5 से 10 दिनों तक बना रहता है।
ज्वर होने के कारणों के आधार पर इसे निम्न ग्रुपों मे
1) अचानक मौसम परिवर्तन के कारण होने वाला साधारण बुखार
2) ठंड लगने के कारण होने वाला ज्वर
3) लू लगने के कारण होने वाला ज्वर
4) वर्षा में भींगने के कारण होने बाला ज्वर
4) पेट की गड़बड़ियों के कारण होने बाला ज्वर
3) घाव, फोड़ों के पकने के कारण होने वाला ज्वर
4) अत्यधिक शोक, या दु:ख के कारण होना
उपरोक्त कारणों से होने बाले ज्वर का ईलाज:-
एकोनाइट (ACONITE)
अचानक होने बाले ज्वर का प्रथम दवा है। अभी थोड़ी देर पहले बच्चा/ आदमी स्वस्थ था, बीमारी का कोई भी लक्षण का नामोनिशान नहीं था और अचानक हाथ पैर गर्म हो जाते है, शरीर का तापक्रम बढ जाता है, सरदर्द एवं बेचैनी लगने लगती है।रोगी कहता है कि मैं अब नहीं बचुंगा। अक्सर गाँवों में इसे ही लोग कहने लगते है कि " नजर लग गई " इस हालत में एकोनाइट -30/200 का 2-2 बूँद दवा की दो खुराक 15-15 मिनट के अन्तर से दे दें। रोगी की हालत में तत्काल लाभ होगा। तथाकथित नजर का लगना उतर जायेगा।
इसके बाद स्थान आता है
ब्रायोनिया (BRYONIA)
रोग के शुरुआत में यदि एकोनाइट नहीं दिया जा सका तो ज्वर का लक्षण बदल जाता है। रोगी चुपचाप पड़ा रहता है, शरीर (हाथ पैरों ) मे दर्द रहता है, आँखें , कनपटी और सिर में काफी दर्द होता है। यह दर्द हिलने डोलने के कारण, यहाँ तक कि आँखें खोलने के कारण भी सिर का दर्द बढ जाता है। मुँह का स्वाद तीता रहता है। जीभ के उपर सफेद/पीला लेप जैसा चढी रहती है। देर देर मे ज्यादा पानी पीता है (1-2 गिलास) पीता है। मुँह सुखा रहता है कब्ज रहता है। ब्रायोनिया - 30/200 का 2-2 बुंद दवा जीभ पर तीन तीन घंटे के अन्तराल पर दें। ज्वर का कारण अचानक ठंड लगना भी होता है।
रसटाक्सिकोडेण्ड्रान (RHUS TOXICODENDRON)
इसे सीधे रसटक्स कहते है। वर्षा मे भींगने या ज्यादा स्नान करने या वरसात मे मौसम मे होने वाला ज्वर का यह Specific Remedy है। यदि ज्वर के साथ खाँसी और प्यास हो तो सीधे सीधे इसे आजमाएं। शरीर मे दर्द ,विशेषकर कमर मे दर्द रहता है। इसके दर्द की विशेषता है कि यह टानने की तरह होता है। ब्रायोनिया के विपरीत इसका दर्द आराम करने से बढ़ता है ।रोगी बिस्तर से उठकर टहलने के लिए मजबुर होता है या बिस्तर पर ही करवट बदलता रहता है।
इयुपेटोरियम पर्फोलिएटम (Eupatorium Perfolietum):-
कुछ ज्वर मे दर्द शरीर के हड्डीयों मे ज्यादा होता है। इसे बोलचाल की भाषा मे हड्डीतोड़ बुखार भी कहते है। हाथ पैंरों की हड्डियों में तेज दर्द इसका प्रधान लक्षण है। इसके साथ जोरों का सिर दर्द, जाड़ा लगना , कँपकँपी होना, यकृत की जगह पर दर्द, जीभ पीली मैल से ढँकी आदि इसके ज्वर के द्वितीयक लक्षण है।
जेल्सिमियम (Gelsimium)
सुस्ती इसका प्रधान लक्षण है। रोगी ज्वर की तीब्र अवस्था में भी चुप्चाप सोया रहता है। प्यास प्राय: नहीं रहती है। तमतमाया हुआ लाल रंग का चेहरा , छलछलायी जल भरी आँखें , लगातार छींकें आना, नाक से लगातार पानी आना आदि इसके मुख्य लक्षण है । रात मे ज्वर बढ जाना, और शुबह में बिना पसीना आये ज्वर उतर जाना , काफी चिढचिढापन के साथ साथ सिर्फ सोये रहने की इच्छा रहना, शरीर मे कोई ताकत नहीं मिलना (बेतरह कमजोरी) आदि इस दवा कि ओर इशारा करते है।
इस दवा की 2-2 बुन्द तीन तीन घंटे के अन्तराल पर दें।
मैं चुनी हुई दवा को निन्म तरीके से देता हूँ- दुसरा खुराक आधे घंटे के बाद , तीसरी ख़ुराक एक घंटे के बाद , चौथी ख़ुराक दो घंटे के बाद , पाचवीं खुराक चार घंटे के बाद देता हूँ, और इससे जल्द लाभ मिलते देखा हूँ ।
मैं Bryonia, Rhustox , Gelsemium और Eupatorium Perfolietum इन चारों दवाओं को (30 शक्ति) मिला कर एक बड़ी बोतल मे रख लिया हूँ । इसे पेटेन्ट दवा के रुप मे अपने कई रिस्तेदारों और दोस्तों को दिया हूँ । किसी भी तरह के सर्दी , खाँसी, बुखार मे इस मिक्चर की 4-5 बूँदें दो दो घंटे के अन्तराल पर लेना काफी फायदेमंद रहा है। साधारणतया आम घरों में किसी बच्चे को या बड़े को बुखार लगने पर उसके लक्षण मिला कर दवा देना सभंव नहीं होता है और वे सीधे एलोपैथ डाक्टर के पास जाना ज्यादा आसान समझते हैं।
इस आम धारणा (होम्योपैथिक के प्रति दु:श्प्रचार) की होम्योपैथिक दवायें धीरे काम करती हैं के कारण आम लोगों को ज्वर की हालत मे एलोपैथ ज्यादा अच्छा लगता है। मैं उन्हें उक्त मिक्चर बना कर रख लेने की सलाह देता हुँ , (चारो दवा की 10-10 ml लेकर एक 50 ml की शीशी मे मिलाकर अच्छी तरह मिलायें , इसकी लागत करीब 30-50 रुपये के बीच आयेगी) इसका प्रयोग उन्हें होम्योपैथिक सिस्टम के प्रति विश्वास बनाये रखेगा।
क्रमस:
बरसात का मौसम और कीड़ों का डंक
बाजार मे मिलने बाली कीड़ों के काटने की दवा से तुरंत आराम नही मिल पाता है, कभी कभी डाक्टर से सलाह लेना आवशयक हो जाता है।
होम्योपैथिक का सौभाग्य है कि इसके पास इसकी कई दवाईयाँ उपलब्ध है जो कि आक्रान्त व्यक्ति को तत्काल लाभ पहुँचाता है।
प्रथम दवा लीडम पैलेस्टर (Ledum Pailester) है, इसकी 200C पोटेन्सी की दवा बाजार से लाकर कर रख लें। कीड़ों, मच्छरों , मधुमक्खियों और उड़ने वाले कई परिचित – अपरिचित कीट - पतंगों के काटने से उत्पन्न उपसर्ग जैसे आक्रान्त स्थान के चारो ओर सूजन हो जाना, काफी जलन और बेचैनी होना आदि लक्षणों में इस दवा का प्रयोग तत्काल आराम देता है, सुजन में भी जल्दी राहत देता है। यह Allergic लोगों पर भी समान रुप से लाभकारी है।
2-2 बुन्द दवा 2-2 घटें के अतंराल पर दो खुराक आक्रान्त व्यक्ति के जीभ पर गिरा दे।
दुसरी दवा एपिस मेल (APIS MEL) जब डंक का स्थान छूने मे गर्म और सूजन पानी भरा हुआ लगता है, जलन और बेचैनी भी हो तो लीडम के स्थान पर एपिस देना ज्यादा अच्छा होगा।
कीड़ों के काटने पर लीडम और एपिस का दो – दो खुराक बना कर एक के बाद दुसरा एक –एक घंटे के अंतराल दें ।
जब डंक किसी जहरीले कीड़े का हो और डंक वाला जगह लाल और काफी गर्म हो, डंक के कारण ज्वर आ गया हो, बेचैनी हो तो बेलाडोना 30/200 की दो खुराकें काफी लाभप्रद होगा।
इस तरह बरसात मे कोई कीड़ा काट खाये तो घबड़ाये नहीं उपरोक्त दवायें आजमायें ।
होम्योपैथिक का संक्षिप्त परिचय
डा सैमुएल हैनिमैन ने स्वंय अपने एवं अपने परिवार के बच्चों, महिलाओं, दोस्तों पर दवाओं का मूल रुप मे प्रयोग कर, शरीर मे उत्पन्न होने बाले विभिन्न शारीरिक और मानसिक लक्षणों को लिपिबद्ध कराया। उन्होने पाया कि जिस औषधि के स्वस्थ शरीर में व्यवहार करने से जो लक्षण उत्पन्न होते है, बीमारी की अवस्था में उसी प्रकार के लक्षण रहने पर उसी औषधि की सुक्ष्म मात्रा का प्रयोग रोगमुक्त करने मे सक्षम होता है। इसी सिद्धान्त को
सम: समं समयति (Similia-Simlibus-Curantur) कहते हैं।
एलोपैथिक चिकित्सा Contraria Contraris सिस्टम पर कार्य करती है। जैसे रोगी को कब्ज होने पर दस्त करने बाली दवा और दस्त होने पर कब्ज पैदा करने बाली दवा देकर रोगमुक्त किया जाता है।
होम्योपैथिक दवाईयाँ मानव जीवन के लिए ज्यादा उपयोगी है क्योंकि इनका समस्त परीक्षण स्वस्थ मानव शरीर पर किया जाता है और एलोपैथिक मे दवाइयों का परीक्षण बिल्ली, चुहे, कुत्ते, मेढक आदि जानवरों पर किया जाता है। क्या जानवरों और मनुष्यों के मानसिक एवं शारीरिक लक्षण समान हो सकते है।
होम्योपैथिक सिस्टम का आविष्कार डा0 हैनिमैन को महात्मा हैनिमैन बना दिया। इस सिस्टम मे किसी रोग का वैसी दवा का चुनाव किया जाता जिसमे रोग के समान लक्षण (Symptoms) उत्पन्न करने की क्षमता हो। चुनी हुई दवा को एक विशेष पद्धति से सूक्ष्मीकरण (Potentisation) किया जाता है। यह पोटेन्टाइज्ड दवा की सूक्ष्म मात्रा (1-2 बूंद) हमारे शरीर की अपनी प्राकृतिक रोग निवारक क्षमता (Vital Force) को उत्तेजित कर बिना कोई हानि के दीर्घकाल के लिए रोगमुक्त करती है।
Potentisation की तीन पद्धतियां प्रचलित है
1) दसवें क्रम की पद्धति – इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और दस भाग अल्कोहल या Sugar of Milk मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 1X कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं तैयार की जाती है । 1X, 2X, 3X, 4X,6X,30X, 200X पोटेन्सी की दवाईयाँ बाजार मे उपलब्ध है।
2) सौवें क्रम की पद्धति - इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और सौ भाग अल्कोहल मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 1C कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं तैयार की जाती है, जिसमे दवा की मात्रा सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जाती है। बाजार मे 3C, 6C, 30C, 200C, 1000 C(1M) , 10000C (10M) 100000C (1CM) पोटेन्सी की दवाईयाँ उपलब्ध है। अधिकांश चिकित्सक इसी क्रम की दवाईयाँ ज्यादा व्यवहार करते है।
3) पचास हजारवें क्रम की पद्धति :- इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और पचास हजार भाग अल्कोहल मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 0/1 कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं 0/2,0/3 तैयार की जाती है, जिसमे दवा की मात्रा अत्यन्त सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जाती है। आजकल इस पोटेसीं की दवाईयाँ काफी चिकित्सक व्यवहार कर रहें है। यह 20 नंबर की गोली मे ही उपलब्ध है।