होम्योपैथिक और ज्वर

Monday, July 20, 2009
ज्वर या बुखार हमारे घरों मे सबसे ज्यादा होने बाली बीमारी है। बुखार कई प्रकार के और कई कारणों से होता है। Homeopathy cure of fever
साधारण ज्वर :- यह कई कारणों से होता है। यह सांघातिक नही होता है, शरीर का तापक्रम 104-105 तक पहुँच जाता है। हाथ पैरों मे काफी दर्द, तेज सिरदर्द होना, कभी कभी वमन होना, बेचैनी या काफी सुस्ती होना, प्यास का होना या ना होना, पसीना आना, आदि लक्षण होते हैं। साधारणतया यह ज्वर 5 से 10 दिनों तक बना रहता है।
ज्वर होने के कारणों के आधार पर इसे निम्न ग्रुपों मे
1) अचानक मौसम परिवर्तन के कारण होने वाला साधारण बुखार
2) ठंड लगने के कारण होने वाला ज्वर
3) लू लगने के कारण होने वाला ज्वर
4) वर्षा में भींगने के कारण होने बाला ज्वर
4) पेट की गड़बड़ियों के कारण होने बाला ज्वर
3) घाव, फोड़ों के पकने के कारण होने वाला ज्वर
4) अत्यधिक शोक, या दु:ख के कारण होना
उपरोक्त कारणों से होने बाले ज्वर का ईलाज:-
एकोनाइट (ACONITE)
अचानक होने बाले ज्वर का प्रथम दवा है। अभी थोड़ी देर पहले बच्चा/ आदमी स्वस्थ था, बीमारी का कोई भी लक्षण का नामोनिशान नहीं था और अचानक हाथ पैर गर्म हो जाते है, शरीर का तापक्रम बढ जाता है, सरदर्द एवं बेचैनी लगने लगती है।रोगी कहता है कि मैं अब नहीं बचुंगा। अक्सर गाँवों में इसे ही लोग कहने लगते है कि " नजर लग गई " इस हालत में एकोनाइट -30/200 का 2-2 बूँद दवा की दो खुराक 15-15 मिनट के अन्तर से दे दें। रोगी की हालत में तत्काल लाभ होगा। तथाकथित नजर का लगना उतर जायेगा।
इसके बाद स्थान आता है
ब्रायोनिया (BRYONIA)
रोग के शुरुआत में यदि एकोनाइट नहीं दिया जा सका तो ज्वर का लक्षण बदल जाता है। रोगी चुपचाप पड़ा रहता है, शरीर (हाथ पैरों ) मे दर्द रहता है, आँखें , कनपटी और सिर में काफी दर्द होता है। यह दर्द हिलने डोलने के कारण, यहाँ तक कि आँखें खोलने के कारण भी सिर का दर्द बढ जाता है। मुँह का स्वाद तीता रहता है। जीभ के उपर सफेद/पीला लेप जैसा चढी रहती है। देर देर मे ज्यादा पानी पीता है (1-2 गिलास) पीता है। मुँह सुखा रहता है कब्ज रहता है। ब्रायोनिया - 30/200 का 2-2 बुंद दवा जीभ पर तीन तीन घंटे के अन्तराल पर दें। ज्वर का कारण अचानक ठंड लगना भी होता है।
रसटाक्सिकोडेण्ड्रान (RHUS TOXICODENDRON)
इसे सीधे रसटक्स कहते है। वर्षा मे भींगने या ज्यादा स्नान करने या वरसात मे मौसम मे होने वाला ज्वर का यह Specific Remedy है। यदि ज्वर के साथ खाँसी और प्यास हो तो सीधे सीधे इसे आजमाएं। शरीर मे दर्द ,विशेषकर कमर मे दर्द रहता है। इसके दर्द की विशेषता है कि यह टानने की तरह होता है। ब्रायोनिया के विपरीत इसका दर्द आराम करने से बढ़ता है ।रोगी बिस्तर से उठकर टहलने के लिए मजबुर होता है या बिस्तर पर ही करवट बदलता रहता है।
इयुपेटोरियम पर्फोलिएटम (Eupatorium Perfolietum):-
कुछ ज्वर मे दर्द शरीर के हड्डीयों मे ज्यादा होता है। इसे बोलचाल की भाषा मे हड्डीतोड़ बुखार भी कहते है। हाथ पैंरों की हड्डियों में तेज दर्द इसका प्रधान लक्षण है। इसके साथ जोरों का सिर दर्द, जाड़ा लगना , कँपकँपी होना, यकृत की जगह पर दर्द, जीभ पीली मैल से ढँकी आदि इसके ज्वर के द्वितीयक लक्षण है।
जेल्सिमियम (Gelsimium)
सुस्ती इसका प्रधान लक्षण है। रोगी ज्वर की तीब्र अवस्था में भी चुप्चाप सोया रहता है। प्यास प्राय: नहीं रहती है। तमतमाया हुआ लाल रंग का चेहरा , छलछलायी जल भरी आँखें , लगातार छींकें आना, नाक से लगातार पानी आना आदि इसके मुख्य लक्षण है । रात मे ज्वर बढ जाना, और शुबह में बिना पसीना आये ज्वर उतर जाना , काफी चिढचिढापन के साथ साथ सिर्फ सोये रहने की इच्छा रहना, शरीर मे कोई ताकत नहीं मिलना (बेतरह कमजोरी) आदि इस दवा कि ओर इशारा करते है।
इस दवा की 2-2 बुन्द तीन तीन घंटे के अन्तराल पर दें।
मैं चुनी हुई दवा को निन्म तरीके से देता हूँ- दुसरा खुराक आधे घंटे के बाद , तीसरी ख़ुराक एक घंटे के बाद , चौथी ख़ुराक दो घंटे के बाद , पाचवीं खुराक चार घंटे के बाद देता हूँ, और इससे जल्द लाभ मिलते देखा हूँ ।
मैं Bryonia, Rhustox , Gelsemium और Eupatorium Perfolietum इन चारों दवाओं को (30 शक्ति) मिला कर एक बड़ी बोतल मे रख लिया हूँ । इसे पेटेन्ट दवा के रुप मे अपने कई रिस्तेदारों और दोस्तों को दिया हूँ । किसी भी तरह के सर्दी , खाँसी, बुखार मे इस मिक्चर की 4-5 बूँदें दो दो घंटे के अन्तराल पर लेना काफी फायदेमंद रहा है। साधारणतया आम घरों में किसी बच्चे को या बड़े को बुखार लगने पर उसके लक्षण मिला कर दवा देना सभंव नहीं होता है और वे सीधे एलोपैथ डाक्टर के पास जाना ज्यादा आसान समझते हैं।
इस आम धारणा (होम्योपैथिक के प्रति दु:श्प्रचार) की होम्योपैथिक दवायें धीरे काम करती हैं के कारण आम लोगों को ज्वर की हालत मे एलोपैथ ज्यादा अच्छा लगता है। मैं उन्हें उक्त मिक्चर बना कर रख लेने की सलाह देता हुँ , (चारो दवा की 10-10 ml लेकर एक 50 ml की शीशी मे मिलाकर अच्छी तरह मिलायें , इसकी लागत करीब 30-50 रुपये के बीच आयेगी) इसका प्रयोग उन्हें होम्योपैथिक सिस्टम के प्रति विश्वास बनाये रखेगा।
क्रमस:

बरसात का मौसम और कीड़ों का डंक

Monday, July 13, 2009
आजकल बरसात का मौसम है। विभिन्न प्रकार कि कीड़े, उड़ते रहते है और कभी कभी काट भी लेते है। विभिन्न प्रकार की चींटियॉ भी काट खाती है। इनके काटने से काफी जलन होता है। आक्रांत स्थान पर काफी सूजन हो जाती है। मधुमक्खियाँ भी बड़े जोर से काट खाती है और यह कभी कभी खतरनाक भी होता है। कुछ कीड़ों का डंक सूजन के साथ साथ काफी जलन और बेचैनी पैदा करने वाला होता है जिसका सही समय पर इलाज आवश्यक है।
बाजार मे मिलने बाली कीड़ों के काटने की दवा से तुरंत आराम नही मिल पाता है, कभी कभी डाक्टर से सलाह लेना आवशयक हो जाता है।

होम्योपैथिक का सौभाग्य है कि इसके पास इसकी कई दवाईयाँ उपलब्ध है जो कि आक्रान्त व्यक्ति को तत्काल लाभ पहुँचाता है।

प्रथम दवा
लीडम पैलेस्टर (Ledum Pailester) है, इसकी 200C पोटेन्सी की दवा बाजार से लाकर कर रख लें। कीड़ों, मच्छरों , मधुमक्खियों और उड़ने वाले कई परिचित – अपरिचित कीट - पतंगों के काटने से उत्पन्न उपसर्ग जैसे आक्रान्त स्थान के चारो ओर सूजन हो जाना, काफी जलन और बेचैनी होना आदि लक्षणों में इस दवा का प्रयोग तत्काल आराम देता है, सुजन में भी जल्दी राहत देता है। यह Allergic लोगों पर भी समान रुप से लाभकारी है।
2-2 बुन्द दवा 2-2 घटें के अतंराल पर दो खुराक आक्रान्त व्यक्ति के जीभ पर गिरा दे।

दुसरी दवा
एपिस मेल (APIS MEL) जब डंक का स्थान छूने मे गर्म और सूजन पानी भरा हुआ लगता है, जलन और बेचैनी भी हो तो लीडम के स्थान पर एपिस देना ज्यादा अच्छा होगा।

कीड़ों के काटने पर लीडम और एपिस का दो – दो खुराक बना कर एक के बाद दुसरा एक –एक घंटे के अंतराल दें ।

जब डंक किसी जहरीले कीड़े का हो और डंक वाला जगह लाल और काफी गर्म हो, डंक के कारण ज्वर आ गया हो, बेचैनी हो तो बेलाडोना 30/200 की दो खुराकें काफी लाभप्रद होगा।

इस तरह बरसात मे कोई कीड़ा काट खाये तो घबड़ाये नहीं उपरोक्त दवायें आजमायें ।

होम्योपैथिक का संक्षिप्त परिचय


होम्योपैथिक जैसी सशक्त चिकित्सा पध्दति का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ मे जर्मनी के ख्याति प्राप्त चिकित्सक “डा0 सैमुएल हैनिमैन ( 1755-1843) के द्वारा स्व परीक्षण के आधार पर हुआ। युरोप में उन दिनों मलेरिया महामारी का रुप ले रहा था, परम्परागत दवा कुनैन अपेक्षित रुप से कारगर नहीं हो रही थी, डा हैनिमैन ने सिन्कोना पेड़ की छाल का रस को स्वंय पर प्रयोग कर देखा और इससे उनके शरीर मे उत्पन्न लक्षणों को (मानसिक और शारीरिक) सविराम ज्वर और मलेरिया के मरीज के लक्षणों के सादृश्य पाया , इसी सिन्कोना का सुक्ष्म मात्रा उन लक्षणों वाला ज्वर को ठीक करने मे पूर्ण सक्षम था। यही प्रयोग डा0 हैनिमैन को और भी वनस्पतियों पर करने को प्रेरित किया और इस प्राकृतिक नियमावलंबित चिकित्सा प्रणाली का जन्म हुआ।

डा सैमुएल हैनिमैन ने स्वंय अपने एवं अपने परिवार के बच्चों, महिलाओं, दोस्तों पर दवाओं का मूल रुप मे प्रयोग कर, शरीर मे उत्पन्न होने बाले विभिन्न शारीरिक और मानसिक लक्षणों को लिपिबद्ध कराया। उन्होने पाया कि जिस औषधि के स्वस्थ शरीर में व्यवहार करने से जो लक्षण उत्पन्न होते है, बीमारी की अवस्था में उसी प्रकार के लक्षण रहने पर उसी औषधि की सुक्ष्म मात्रा का प्रयोग रोगमुक्त करने मे सक्षम होता है। इसी सिद्धान्त को
सम: समं समयति (Similia-Simlibus-Curantur) कहते हैं।

एलोपैथिक चिकित्सा Contraria Contraris सिस्टम पर कार्य करती है। जैसे रोगी को कब्ज होने पर दस्त करने बाली दवा और दस्त होने पर कब्ज पैदा करने बाली दवा देकर रोगमुक्त किया जाता है।

होम्योपैथिक दवाईयाँ मानव जीवन के लिए ज्यादा उपयोगी है क्योंकि इनका समस्त परीक्षण स्वस्थ मानव शरीर पर किया जाता है और एलोपैथिक मे दवाइयों का परीक्षण बिल्ली, चुहे, कुत्ते, मेढक आदि जानवरों पर किया जाता है। क्या जानवरों और मनुष्यों के मानसिक एवं शारीरिक लक्षण समान हो सकते है।

होम्योपैथिक सिस्टम का आविष्कार डा0 हैनिमैन को महात्मा हैनिमैन बना दिया। इस सिस्टम मे किसी रोग का वैसी दवा का चुनाव किया जाता जिसमे रोग के समान लक्षण (Symptoms) उत्पन्न करने की क्षमता हो। चुनी हुई दवा को एक विशेष पद्धति से सूक्ष्मीकरण (Potentisation) किया जाता है। यह पोटेन्टाइज्ड दवा की सूक्ष्म मात्रा (1-2 बूंद) हमारे शरीर की अपनी प्राकृतिक रोग निवारक क्षमता (Vital Force) को उत्तेजित कर बिना कोई हानि के दीर्घकाल के लिए रोगमुक्त करती है।
Potentisation की तीन पद्धतियां प्रचलित है
1) दसवें क्रम की पद्धति – इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और दस भाग अल्कोहल या Sugar of Milk मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 1X कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं तैयार की जाती है । 1X, 2X, 3X, 4X,6X,30X, 200X पोटेन्सी की दवाईयाँ बाजार मे उपलब्ध है।

2) सौवें क्रम की पद्धति - इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और सौ भाग अल्कोहल मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 1C कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं तैयार की जाती है, जिसमे दवा की मात्रा सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जाती है। बाजार मे 3C, 6C, 30C, 200C, 1000 C(1M) , 10000C (10M) 100000C (1CM) पोटेन्सी की दवाईयाँ उपलब्ध है। अधिकांश चिकित्सक इसी क्रम की दवाईयाँ ज्यादा व्यवहार करते है।
3) पचास हजारवें क्रम की पद्धति :- इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और पचास हजार भाग अल्कोहल मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 0/1 कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं 0/2,0/3 तैयार की जाती है, जिसमे दवा की मात्रा अत्यन्त सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जाती है। आजकल इस पोटेसीं की दवाईयाँ काफी चिकित्सक व्यवहार कर रहें है। यह 20 नंबर की गोली मे ही उपलब्ध है।

होम्योपैथिक क्यों
जब एलोपैथिक एवं आयुर्वेदिक जैसी और प्रमाणिक सशक्त चिकित्सा प्रणाली उपलब्ध है तो हम होम्योपैथिक क्यों अपनायें:-
1) सर्वप्रथम होम्योपैथिक शक्तिकृत दवायें बिल्कुल हानिरहित और बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के रोग को जड़ से मिटाने मे सक्षम है।
2) ये दवायें चुकिं रोगी के स्वयं के जीवनी शक्ति को ही उत्प्रेरित कर रोग से मुक्ति दिलाती है, मुख्य बीमारी के साथ साथ अन्य बीमारियाँ भी दुर करने मे सक्षम होती है।
3) होम्योपैथिक चिकित्सा मे कभी कभी वांछित (आवश्यक) सर्जरी भी अनावश्यक हो जाती है। विशेषकर "पथरी, ट्युमर, घेघा, नाक के अन्दर माँस बढना, प्रोस्टेट ग्लैण्ड का बढना, टांसिलाइटिस, हड्डी का बढना आदि। इससे न सिर्फ मेहनत से क्माये पैसों की बचत होती हैं वरन सर्जरी के दुश्प्रभावों से भी बचाव होता है।
4) होम्योपैथिक में कई बीमारियों का रोग प्रतिरोधक दवायें उपलव्ध है जो रोग के फैलने की अवस्था में ,स्वस्थ शरीर में रोग का आक्रमण नही होने देता है। क्रुप खासी ,मिजल्स, टीट्नस,पथरी आदि।
5) ये दवायें मीठी मीठी चीनी की गोलियों मे कुछ बुन्दें डाल कर दी जाती, छोटे छोटे बच्चे भी बड़े प्रेम से खा लेतें हैं।
6) होम्योपैथिक चिकित्सा अन्य किसी भी चिकित्सा पद्धति से काफी सस्ती है, इसमें दवा की न्युन से न्युनतन मात्रा होती है।
7) सिर्फ इसी चिकित्सा पद्धति मे रोगी के शारीरिक के साथ साथ मानसिक लक्षणों का भी विश्लेषण्किया जाता है जिससे रोग को जड़ से मिटाने मे सफलता मिलती है।
8) पुराना से पुराना रोग यहाँ तक कि वंशगत बीमारियाँ भी छोटी छोटी मीठी होम्योपैथिक की गोलियों से समाप्त होती है।
9) आज होम्योपथिक सिस्टम भी दवाओं के मामले में भी काफी धनी है, करीब ढाई हजार से भी अधिक दवायें यहाँ उपलब्ध है। आजकल इसके सदृश अन्य चिकित्सा पद्धति जैसे
डा0 सुस्लर (Dr. W. H. SCHUESSLER) का बायोकेमिक,
जो कि होम्योपैथिक के समं सम: समयति के सिद्धांत पर कार्य करती है , होम्योपथिक चिकित्सा पद्धति मे समाहित होकर इसको और समृद्ध किया है।
10) होम्योपैथिक दवाओं का परीक्षण (Proving) समकालीन नामी एलोपैथ डाक्टरों के द्वारा स्वस्थ मानव शरीर पर (स्वय, रिस्तेदारो और दोस्तों) किया गया है और शारीरिक के साथ साथ मानसिक लक्षणों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है जो कि आज भी पूरी तरह प्रासागिंक है।
यह मानव शरीर को पूर्ण रोगमुक्त करने मे सक्षम है।
11) होम्योपैथिक दवायें जानवरों पर भी काफी असरकारी है।