होम्योपैथिक का संक्षिप्त परिचय

Monday, July 13, 2009

होम्योपैथिक जैसी सशक्त चिकित्सा पध्दति का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ मे जर्मनी के ख्याति प्राप्त चिकित्सक “डा0 सैमुएल हैनिमैन ( 1755-1843) के द्वारा स्व परीक्षण के आधार पर हुआ। युरोप में उन दिनों मलेरिया महामारी का रुप ले रहा था, परम्परागत दवा कुनैन अपेक्षित रुप से कारगर नहीं हो रही थी, डा हैनिमैन ने सिन्कोना पेड़ की छाल का रस को स्वंय पर प्रयोग कर देखा और इससे उनके शरीर मे उत्पन्न लक्षणों को (मानसिक और शारीरिक) सविराम ज्वर और मलेरिया के मरीज के लक्षणों के सादृश्य पाया , इसी सिन्कोना का सुक्ष्म मात्रा उन लक्षणों वाला ज्वर को ठीक करने मे पूर्ण सक्षम था। यही प्रयोग डा0 हैनिमैन को और भी वनस्पतियों पर करने को प्रेरित किया और इस प्राकृतिक नियमावलंबित चिकित्सा प्रणाली का जन्म हुआ।

डा सैमुएल हैनिमैन ने स्वंय अपने एवं अपने परिवार के बच्चों, महिलाओं, दोस्तों पर दवाओं का मूल रुप मे प्रयोग कर, शरीर मे उत्पन्न होने बाले विभिन्न शारीरिक और मानसिक लक्षणों को लिपिबद्ध कराया। उन्होने पाया कि जिस औषधि के स्वस्थ शरीर में व्यवहार करने से जो लक्षण उत्पन्न होते है, बीमारी की अवस्था में उसी प्रकार के लक्षण रहने पर उसी औषधि की सुक्ष्म मात्रा का प्रयोग रोगमुक्त करने मे सक्षम होता है। इसी सिद्धान्त को
सम: समं समयति (Similia-Simlibus-Curantur) कहते हैं।

एलोपैथिक चिकित्सा Contraria Contraris सिस्टम पर कार्य करती है। जैसे रोगी को कब्ज होने पर दस्त करने बाली दवा और दस्त होने पर कब्ज पैदा करने बाली दवा देकर रोगमुक्त किया जाता है।

होम्योपैथिक दवाईयाँ मानव जीवन के लिए ज्यादा उपयोगी है क्योंकि इनका समस्त परीक्षण स्वस्थ मानव शरीर पर किया जाता है और एलोपैथिक मे दवाइयों का परीक्षण बिल्ली, चुहे, कुत्ते, मेढक आदि जानवरों पर किया जाता है। क्या जानवरों और मनुष्यों के मानसिक एवं शारीरिक लक्षण समान हो सकते है।

होम्योपैथिक सिस्टम का आविष्कार डा0 हैनिमैन को महात्मा हैनिमैन बना दिया। इस सिस्टम मे किसी रोग का वैसी दवा का चुनाव किया जाता जिसमे रोग के समान लक्षण (Symptoms) उत्पन्न करने की क्षमता हो। चुनी हुई दवा को एक विशेष पद्धति से सूक्ष्मीकरण (Potentisation) किया जाता है। यह पोटेन्टाइज्ड दवा की सूक्ष्म मात्रा (1-2 बूंद) हमारे शरीर की अपनी प्राकृतिक रोग निवारक क्षमता (Vital Force) को उत्तेजित कर बिना कोई हानि के दीर्घकाल के लिए रोगमुक्त करती है।
Potentisation की तीन पद्धतियां प्रचलित है
1) दसवें क्रम की पद्धति – इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और दस भाग अल्कोहल या Sugar of Milk मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 1X कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं तैयार की जाती है । 1X, 2X, 3X, 4X,6X,30X, 200X पोटेन्सी की दवाईयाँ बाजार मे उपलब्ध है।

2) सौवें क्रम की पद्धति - इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और सौ भाग अल्कोहल मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 1C कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं तैयार की जाती है, जिसमे दवा की मात्रा सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जाती है। बाजार मे 3C, 6C, 30C, 200C, 1000 C(1M) , 10000C (10M) 100000C (1CM) पोटेन्सी की दवाईयाँ उपलब्ध है। अधिकांश चिकित्सक इसी क्रम की दवाईयाँ ज्यादा व्यवहार करते है।
3) पचास हजारवें क्रम की पद्धति :- इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और पचास हजार भाग अल्कोहल मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 0/1 कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं 0/2,0/3 तैयार की जाती है, जिसमे दवा की मात्रा अत्यन्त सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जाती है। आजकल इस पोटेसीं की दवाईयाँ काफी चिकित्सक व्यवहार कर रहें है। यह 20 नंबर की गोली मे ही उपलब्ध है।

होम्योपैथिक क्यों
जब एलोपैथिक एवं आयुर्वेदिक जैसी और प्रमाणिक सशक्त चिकित्सा प्रणाली उपलब्ध है तो हम होम्योपैथिक क्यों अपनायें:-
1) सर्वप्रथम होम्योपैथिक शक्तिकृत दवायें बिल्कुल हानिरहित और बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के रोग को जड़ से मिटाने मे सक्षम है।
2) ये दवायें चुकिं रोगी के स्वयं के जीवनी शक्ति को ही उत्प्रेरित कर रोग से मुक्ति दिलाती है, मुख्य बीमारी के साथ साथ अन्य बीमारियाँ भी दुर करने मे सक्षम होती है।
3) होम्योपैथिक चिकित्सा मे कभी कभी वांछित (आवश्यक) सर्जरी भी अनावश्यक हो जाती है। विशेषकर "पथरी, ट्युमर, घेघा, नाक के अन्दर माँस बढना, प्रोस्टेट ग्लैण्ड का बढना, टांसिलाइटिस, हड्डी का बढना आदि। इससे न सिर्फ मेहनत से क्माये पैसों की बचत होती हैं वरन सर्जरी के दुश्प्रभावों से भी बचाव होता है।
4) होम्योपैथिक में कई बीमारियों का रोग प्रतिरोधक दवायें उपलव्ध है जो रोग के फैलने की अवस्था में ,स्वस्थ शरीर में रोग का आक्रमण नही होने देता है। क्रुप खासी ,मिजल्स, टीट्नस,पथरी आदि।
5) ये दवायें मीठी मीठी चीनी की गोलियों मे कुछ बुन्दें डाल कर दी जाती, छोटे छोटे बच्चे भी बड़े प्रेम से खा लेतें हैं।
6) होम्योपैथिक चिकित्सा अन्य किसी भी चिकित्सा पद्धति से काफी सस्ती है, इसमें दवा की न्युन से न्युनतन मात्रा होती है।
7) सिर्फ इसी चिकित्सा पद्धति मे रोगी के शारीरिक के साथ साथ मानसिक लक्षणों का भी विश्लेषण्किया जाता है जिससे रोग को जड़ से मिटाने मे सफलता मिलती है।
8) पुराना से पुराना रोग यहाँ तक कि वंशगत बीमारियाँ भी छोटी छोटी मीठी होम्योपैथिक की गोलियों से समाप्त होती है।
9) आज होम्योपथिक सिस्टम भी दवाओं के मामले में भी काफी धनी है, करीब ढाई हजार से भी अधिक दवायें यहाँ उपलब्ध है। आजकल इसके सदृश अन्य चिकित्सा पद्धति जैसे
डा0 सुस्लर (Dr. W. H. SCHUESSLER) का बायोकेमिक,
जो कि होम्योपैथिक के समं सम: समयति के सिद्धांत पर कार्य करती है , होम्योपथिक चिकित्सा पद्धति मे समाहित होकर इसको और समृद्ध किया है।
10) होम्योपैथिक दवाओं का परीक्षण (Proving) समकालीन नामी एलोपैथ डाक्टरों के द्वारा स्वस्थ मानव शरीर पर (स्वय, रिस्तेदारो और दोस्तों) किया गया है और शारीरिक के साथ साथ मानसिक लक्षणों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है जो कि आज भी पूरी तरह प्रासागिंक है।
यह मानव शरीर को पूर्ण रोगमुक्त करने मे सक्षम है।
11) होम्योपैथिक दवायें जानवरों पर भी काफी असरकारी है।

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